साधु सुन्दर सिंह, 3 सिंतबर 1889 को लुधियाना के रामपुरा में जन्मे थे। वे एक ईसाई भारतीय थे। उनका संभवतः हिमालय के निचले क्षेत्र में निधन 1929 में हुआ था।
साधु सुन्दर सिंह का जन्म एक सिख लुधियाना में पटियाला राज्य में हुआ था। साधु सुन्दर सिंह की मां उन्हे सदॅव साधुओके संगत में रेहने ले जाती थी, जो की वनो औ जंगलो में रेह्ते थे। वे सुन्दर सिंह को लुधियाना के इसाई स्कुल में अन्ग्रेजी सिखने भेजती थी।
साधु सुन्दर सिंह की मां का देहांत तब हुआ जब वे 14 वर्ष के थे, जिसे वह् हिंसा और निरशा में डुब गये। उन्होने अपना क्रोध इसाई मिशनरीयों पे निकाला, वे इसाई लोगो को सताने लगे और उनके अस्था का अपमान करने लगे। उनके धर्म को चुनोती के लिये उन्होने एक बाइबल खरीदा और उसका एक एक पन्ना अपने मित्र के समने जला दिया। तीन रातो के बाद, रैल पटरी पर आत्मदाह करने से पहले उन्होने स्नान कीया, जब वह स्नान कर रहे थे, साधुने जोर से कहा कौन है सच्चा परमेश्वर। अगर परमेश्वर ने अपना अस्तित्व उन्हे उस रात नहीं बताया होता तो वे अत्मदाह करते थे। अंत भोर खुलने से पेहले साधु सिंह को येशु मसिह का उन्के छिदे हुए हाथों के साथ् द्रुष्टांत हुआ।
भोर से पहले, साधुने अपने पिताजी को उठाया ताकी वह उन्हे बताये कि उन्हे येशु मसिह का द्रुष्टांत हुआ और उन्होने येशु मसिह कि अवाज सुनी। और उन्होने अपने पिताजी को बताया की इसके बाद वह मसिह के पिछे चलेंगे। वह केवल 15 वर्ष में ही वह पूरी तरह से मसीह के लिए प्रतिबद्ध हुए। उनकी कुमार अवस्था में ही शिष्यत्वता की परीक्षा हुई जब उनके पिताजी ने उन्हे अनुरोध और मांगकी की वह् धर्मातरण होने का बेतुका पण छोड़ दे, जब उन्होने ऐस करने से मना किया तो उनके पिताजी ने उनके लिये विदायी भोज रखा और उनकी नीन्दा करके अपने परीवार से निकाल दिया, कुछ घंटो के बाद सुन्दर को पता चला की उनके भोज में विष मिलाया गया था, पास के ही इसाई समुदाय कि सहय्यता से उनके प्राण बचे।
उनके 16 वे जन्म दिवस पर उन्होने सामुहिक रूप से शिमला के चर्च् में एक इसाई के रूप में बप्तिस्मा लिया।
साधु सुन्दर सिंह का जन्म एक सिख लुधियाना में पटियाला राज्य में हुआ था। साधु सुन्दर सिंह की मां उन्हे सदॅव साधुओके संगत में रेहने ले जाती थी, जो की वनो औ जंगलो में रेह्ते थे। वे सुन्दर सिंह को लुधियाना के इसाई स्कुल में अन्ग्रेजी सिखने भेजती थी।
साधु सुन्दर सिंह की मां का देहांत तब हुआ जब वे 14 वर्ष के थे, जिसे वह् हिंसा और निरशा में डुब गये। उन्होने अपना क्रोध इसाई मिशनरीयों पे निकाला, वे इसाई लोगो को सताने लगे और उनके अस्था का अपमान करने लगे। उनके धर्म को चुनोती के लिये उन्होने एक बाइबल खरीदा और उसका एक एक पन्ना अपने मित्र के समने जला दिया। तीन रातो के बाद, रैल पटरी पर आत्मदाह करने से पहले उन्होने स्नान कीया, जब वह स्नान कर रहे थे, साधुने जोर से कहा कौन है सच्चा परमेश्वर। अगर परमेश्वर ने अपना अस्तित्व उन्हे उस रात नहीं बताया होता तो वे अत्मदाह करते थे। अंत भोर खुलने से पेहले साधु सिंह को येशु मसिह का उन्के छिदे हुए हाथों के साथ् द्रुष्टांत हुआ।
भोर से पहले, साधुने अपने पिताजी को उठाया ताकी वह उन्हे बताये कि उन्हे येशु मसिह का द्रुष्टांत हुआ और उन्होने येशु मसिह कि अवाज सुनी। और उन्होने अपने पिताजी को बताया की इसके बाद वह मसिह के पिछे चलेंगे। वह केवल 15 वर्ष में ही वह पूरी तरह से मसीह के लिए प्रतिबद्ध हुए। उनकी कुमार अवस्था में ही शिष्यत्वता की परीक्षा हुई जब उनके पिताजी ने उन्हे अनुरोध और मांगकी की वह् धर्मातरण होने का बेतुका पण छोड़ दे, जब उन्होने ऐस करने से मना किया तो उनके पिताजी ने उनके लिये विदायी भोज रखा और उनकी नीन्दा करके अपने परीवार से निकाल दिया, कुछ घंटो के बाद सुन्दर को पता चला की उनके भोज में विष मिलाया गया था, पास के ही इसाई समुदाय कि सहय्यता से उनके प्राण बचे।
उनके 16 वे जन्म दिवस पर उन्होने सामुहिक रूप से शिमला के चर्च् में एक इसाई के रूप में बप्तिस्मा लिया।